बड़े सपनों का बोझ बड़ा,
पलकों से सहा नहीं जाता !
उठता है जब कोई दुनिया से,
आँखें खोल नहीं पाता !
अपने मतलब का खेल है सारा,
सबसे रिश्ता सबसे नाता !
बूंदों को गोद से उतारने में,
झरना प्यासा ही रह जाता !
जिंदगी का रंज सबका एक,
'काश एक मौक़ा मिल जाता!'
पथ्हर पे पैर बिना रखे,
रास्ता कोई ऊपर नहीं जाता!
इश्क, इबादत, तख़्त और ताज,
वैसे ही थे कल, जैसे आज !
सबकी ख्वाहिश पूरी कर देता,
तो खुदा भी क्या खुदा रह जाता ?