मेरी आदत है कभी कभी एक पुरी कविता की जगह बस ३-४ पंक्तियाँ लिख देता हूँ । कभी ये अधूरी लगती हैं , कभी पुरी। कुछ ऐसी ही पुरानी रचनाएँ ...
१) न धरती पिघलती, न रोता आसमान
फ़िर क्यूँ बदलता है हर लम्हा इंसान?
२) खोखले जिस्मों की भीड़ में, एक रूह तलाशता हूँ मैं।
अब भी इन मुर्दों की बस्ती में, एक हमदर्द तलाशता हूँ मैं ।
अपने ही ख्यालों से दूर, अक्सर भागता हूँ मैं।
चाहत की अब चाहत न रही, फ़िर क्या चाहता हूँ मैं?
३) मैं तो सन्नाटों के ही शोर से परेशान हूँ,
जाने क्या हाल होता महफ़िल-ऐ-जहाँ में !
४) रखना सम्हाल कर बूंदों को , कल आँखें इनको तरसेंगी,
जाने किस देश की बूंदे हैं , और किस धरती पर बरसेंगी !
५ ) आबाद दिल के जहाँ को बरबाद कर गए,
एक रोज़ भरी महफ़िल में वो आदाब कर गए :)
६ ) गर निगाहें मिलने से ही , इश्क होता ऐ नादान ,
तो हर आँख दिखाने वाला मेरा महबूब होता !
2 comments:
superb writing...keep going pandey ji...:)
ultimate hai :-) hamesha ki tarah--
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