हर किसी की अपनी दुनिया,
और वो उस दुनिया का सिकंदर.
एक मुठी भर दिल में उमड़ता,
आकांक्षाओं का समंदर.
पहचान सको तो पहचानो,
क्या है बाहर क्या है अन्दर.
सोचो तो महज़ एक पथ्हर है,
नाजों से तराशा संगमरमर.
पर किस से कहूं, और क्यूँ मैं कहूं,
मुर्दों ने बसा रखे हैं शहर.
जब आँखों पे पट्टी बाँधी हो,
तो कौन सी शब् और कैसी सेहर.
कभी तो देखो, कभी तो सोचो,
कहाँ ले जा रही तुम्हे ये दौड़?
अंजाम तो सबका एक ही है,
फिर आपस में कैसी होड़?
मैं और तुम जब एक ही हों,
तो कैसी जीत और कैसी हार?
कभी तो हाथ बढ़ा कर देखो,
बाहों में होगा संसार. :)
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