किसी ने सोच कर ही कुछ ये इनका नाम रखा है,
तनहा खामोश रातों में घडी के 'कांटे' चुभते हैं !
अजब फितरत है ये कमबख्त किस्मत से उलझने की,
कुछ ऐसे फूल हैं जो आदतन पथ्हर पे खिलते हैं !
राहों में धूप, बारिश , मील के पथ्हर ही यार मिले,
जहां से हम मुड़े शायद वहां ही हमसफ़र मिलते हैं !
कलम भी श्याही पी कर आजकल ज्यादा बहकती है,
जानती नहीं अब कागज़ पे बस लैला-मजनू बिकते हैं !
तनहा खामोश रातों में घडी के 'कांटे' चुभते हैं !
अजब फितरत है ये कमबख्त किस्मत से उलझने की,
कुछ ऐसे फूल हैं जो आदतन पथ्हर पे खिलते हैं !
राहों में धूप, बारिश , मील के पथ्हर ही यार मिले,
जहां से हम मुड़े शायद वहां ही हमसफ़र मिलते हैं !
कलम भी श्याही पी कर आजकल ज्यादा बहकती है,
जानती नहीं अब कागज़ पे बस लैला-मजनू बिकते हैं !