Wednesday, October 28, 2009

कल की कल्पना

रात के समाचार में आतंकवाद , नक्सलवाद, मिसाइल, बम जैसे शब्दों को सुनकर जब चांदनी रात के आसमान की ओर देखा तो कुछ ऐसे ख़याल आए :



लगता है ये चाँद कभी किसी आतंकवादी गिरोह का आत्मघाती सदस्य रहा होगा। एक रोज़ जब फिदाइन हमला करते हुए इसे पकड़ लिया गया, तो इसने ख़ुद को फांसी लगा ली और बम से उड़ा लिया।

ये जो सफ़ेद सा गोला रोज़ आसमान में दिखता है ना...... वो उस आतंकवादी का फांसी में लटका हुआ सर है। और अपने कमर से बांधे हुए बम से उसने अपने शरीर के असंख्य टुकड़े कर लिए , जो पुरे आसमान में तारे बन कर बिखर गए हैं।

वक्त रहते कुछ नही बदला तो शायद भविष्य की कल्पना ऐसी ही हो :)

Sunday, October 25, 2009

एक ख़याल

हर रोज़ नए चेहरे, हर रोज़ नयी बातें ,
जाने कितनी झूठी और कितनी सच्ची मुलाकातें
है वही ज़मीन और वही आसमा पर,
हर रोज़ नए दिन हर रोज़ नयी रातें

Friday, October 16, 2009

Happy diwali !

गीली मिटटी का एक दिया, जब अमावस के अँधेरे से लड़ता है...स्वयं राम बन हर आँगन सु-राज की कोशिश करता है !

हो खुशियों से भरा यह दीपपर्व जो सब को प्रकाशित करता है !!

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं. :)
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