Wednesday, February 1, 2012

कश्मकश



यूँ जिंदगी की रफ़्तार के गिरफ्तार हम,
कुसूरवार वो पर गुनहगार हम!
कहाँ इतनी जुर्रत है नादानीयों में?
पकड़ते हैं राह अपनी दानिस्ता हम!
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नहीं करती परेशान ये दुनिया की उलझन,
जो औरों की तरह हम भी सोचते कम!
करें कैसे सामना गैरत का अपनी?
बेअदब वो है और साइश्ता हम !
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