Monday, February 8, 2010

बचपन :)

सूरज और परछाई जैसे, लूका - छुप्पी खेलेंगे,
दरवाजों दीवारों से छिप कर , सारा बचपन देखेंगे।
कोई दीवार चुन लेना तुम , बीस तक गिनती गिनना ,
फ़र्ज़ करो हर एक गिनती पे , एक बरस पीछा मुड़ना।

एक रुपये फी घंटे की दर पे साइकिल कीराये पर लेंगे ,
रेस लगाएंगे आपस में , थोडा गिर के सम्ह्लेंगे।
पैसे बचे तो पच्चास पैसे की दो पतंग ले आएँगे ,
डोर से बंद उड़ आसमान में ,बादल की सैर कर आएँगे।

पिच्च्ले मोहल्ले की टीम से क्रिकेट मैच भी खेलेंगे ,
जीत के बाद ओवर बचे ,तो भी पूरी बैटिंग लेंगे ।
शर्त के पैसे जीत के फिर , गन्ने का रस पीने जाएँगे,
मीठे रस के हर एक घूँट में सारे शिकवे मिट जाएँगे।

किसने सोचा था बरसों बाद हम ऐसे सपने देखेंगे ?
बचपन के सपने सच करते करते , सारा बचपन खो देंगे।
जाने तुम दुनिया के किस कोने में छुप कर बैठे हो ?
मैंने बीस की गिनती गिनी , और देखा तुम तो ओझिल हो।

हार मान ली मैंने आओ अगला दाम तुम्हारा है ,
फिर से खेल शुरू करें ? अब अगली पारी खेलेंगे :)
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