Thursday, September 23, 2010

शिकायत ...

किसी ने सोच कर ही कुछ ये इनका नाम रखा है,
तनहा खामोश रातों में घडी के 'कांटे' चुभते हैं !

अजब फितरत है ये कमबख्त किस्मत से उलझने की,
कुछ ऐसे फूल हैं जो आदतन पथ्हर पे खिलते हैं !

राहों में धूप, बारिश , मील के पथ्हर ही यार मिले,
जहां से हम मुड़े शायद वहां ही हमसफ़र मिलते हैं !

कलम भी श्याही पी कर आजकल ज्यादा बहकती है,
जानती नहीं अब कागज़ पे बस लैला-मजनू बिकते हैं !

Tuesday, September 21, 2010

खुशरंग

बने खुशरंग तेरे सपने,
मेरी आँखों के रंग से ही |
मैं बस कल रात जागा था,
ये कितनी सुर्ख हैं देखो !
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