Thursday, September 23, 2010

शिकायत ...

किसी ने सोच कर ही कुछ ये इनका नाम रखा है,
तनहा खामोश रातों में घडी के 'कांटे' चुभते हैं !

अजब फितरत है ये कमबख्त किस्मत से उलझने की,
कुछ ऐसे फूल हैं जो आदतन पथ्हर पे खिलते हैं !

राहों में धूप, बारिश , मील के पथ्हर ही यार मिले,
जहां से हम मुड़े शायद वहां ही हमसफ़र मिलते हैं !

कलम भी श्याही पी कर आजकल ज्यादा बहकती है,
जानती नहीं अब कागज़ पे बस लैला-मजनू बिकते हैं !

3 comments:

aditya said...

diwaal pot di bhaiya...diwaal pot di

Dev said...

Sirji..adhuri thi...aaj puri ki hai...Diwar pe naya rang aaya hai :D

richa said...

I am IMPRESSED !!

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