सूरज और परछाई जैसे, लूका - छुप्पी खेलेंगे,
दरवाजों दीवारों से छिप कर , सारा बचपन देखेंगे।
कोई दीवार चुन लेना तुम , बीस तक गिनती गिनना ,
फ़र्ज़ करो हर एक गिनती पे , एक बरस पीछा मुड़ना।
एक रुपये फी घंटे की दर पे साइकिल कीराये पर लेंगे ,
रेस लगाएंगे आपस में , थोडा गिर के सम्ह्लेंगे।
पैसे बचे तो पच्चास पैसे की दो पतंग ले आएँगे ,
डोर से बंद उड़ आसमान में ,बादल की सैर कर आएँगे।
पिच्च्ले मोहल्ले की टीम से क्रिकेट मैच भी खेलेंगे ,
जीत के बाद ओवर बचे ,तो भी पूरी बैटिंग लेंगे ।
शर्त के पैसे जीत के फिर , गन्ने का रस पीने जाएँगे,
मीठे रस के हर एक घूँट में सारे शिकवे मिट जाएँगे।
किसने सोचा था बरसों बाद हम ऐसे सपने देखेंगे ?
बचपन के सपने सच करते करते , सारा बचपन खो देंगे।
जाने तुम दुनिया के किस कोने में छुप कर बैठे हो ?
मैंने बीस की गिनती गिनी , और देखा तुम तो ओझिल हो।
हार मान ली मैंने आओ अगला दाम तुम्हारा है ,
फिर से खेल शुरू करें ? अब अगली पारी खेलेंगे :)
12 comments:
Mind Blowing sir ji....
I am just speechless, a wonderful flashback :)
Extension 2 my thoughts... I love it!!!
awesome sirji.....
Came across your blog through gaurav, and really liked this post. Everything is so true and seems like all this has happened just a few days ago. All of us so much wish if we can go back to those times. Keep posting such nice thoughts, looking forward to more of these.
superb sir...keep it up...
masterpiece hai ye to :-)
Thank you all :) I know those wonderful years are really like lost paradise to all of us. But as they say - Lets not be sad coz its over, rather be happy that it happened!
Bhaiya this is seriously one of the best things I've ever read...you are no less than any "sahir" or "Mir"...awesome...we are proud of you pandey ji..
Pretty GUd, Dude!!!
Prabhu, malik chha gayein , last ki 2 layine kaatil thee.
bahot hi sahi likhi hai bhai .. kasam se maja a gaya .. too good.
nice poem,even i have written too....
great ..liked it ! v inspirational:)
dats mine :)
Hair Hair Hair
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