Through my windows...
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Friday, April 22, 2011
बूँद
छोडती हैं जो आसमान ,
मिट्टी में मिल जाने के लिए|
फिर बह दूर उस मिटटी से ही,
सागर में खो जाने के लिए|
बहती हैं भाव के झरने बन,
जब बैठूं कभी मैं पलकें मूँद |
शीतल, निर्मल, निज आभा लिए,
छोटी सी एक पानी की बूँद | :)
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